गंगटोक: जहाँ बादल बोलते हैं और आत्मा शांत होती है – G.M. Academy के प्रधानाचार्य की यात्रा
—प्रमोद कुमार
गर्मियों की छुट्टियों में जहाँ अधिकतर लोग शांति की तलाश में होते हैं, वहीं G.M. ACADEMY, सलेमपुर, देवरिया के प्रधानाचार्य ने इस अवसर को प्रकृति के सान्निध्य में आत्म-संवाद का माध्यम बनाया। उन्होंने सिक्किम की गोद में बसे स्वप्निल शहर गंगटोक की यात्रा की और वहाँ की जीवंतता, शांति और सौंदर्य को अपने शब्दों में कुछ यूं उकेरा—
“गंगटोक: बादलों की कविता, आत्मा की शांति”
हिमालय की उँचाइयों पर बसा गंगटोक एक ऐसा शहर है, जहाँ लगता है समय थम सा गया हो। जब मैं पहली बार इस नगर में प्रवेश कर रहा था, तब लगता था जैसे किसी चित्रकार ने अपनी कल्पनाओं से यह शहर रचा हो—घने बादलों में लिपटे पहाड़, हरियाली से ढकी घाटियाँ, और झरनों की गूंज से सजीव वातावरण।

कंचनजंघा की गोद में
गंगटोक की सबसे पहली झलक कंचनजंघा की बर्फ से ढकी चोटियों के साथ मिलती है। जब सुबह की रौशनी इन चोटियों पर पड़ती है, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो आकाश धरती से बात कर रहा हो। उस क्षण को शब्दों में बाँधना कठिन है—वो दृश्य आँखों से ज़्यादा आत्मा को छूता है।

हरियाली की बोलती छटा
यहाँ की वादियाँ प्रकृति के सबसे सुंदर रंगों से रंगी हैं। ‘फ्लॉवर शो गार्डन’ में जब मैंने ऑर्किड्स और रॉडोडेंड्रन के रंग-बिरंगे फूलों को देखा, तो लगा जैसे धरती ने स्वर्ग की पोशाक पहन ली हो। वह नज़ारा एक शिक्षक नहीं, बल्कि एक साधक बनने का आभास कराता है।

बादलों का संगीत और नदियों की लय
गंगटोक की सड़कों पर चलना एक अलग ही अनुभव है। एक पल धूप खिलती है, और दूसरे ही पल घना कोहरा सब कुछ ढक लेता है। टशी व्यू पॉइंट से बहती तीस्ता नदी की कल-कल ध्वनि को सुनना, किसी संत की वाणी सुनने जैसा है। वहाँ की हवा भी कुछ कहती है, बस ज़रूरत होती है—शांत होकर सुनने की।
ध्यान और अध्यात्म की भूमि
एनची मोनेस्ट्री और दो-द्रुल चोर्टेन जैसे स्थलों ने मेरे भीतर की चुप्पी से मुझे मिलवाया। वहाँ बैठे-बैठे लगा जैसे शब्द समाप्त हो चुके हैं और शांति बोल रही है। वहाँ की प्रार्थना चक्रों की घूमती ध्वनि और तिब्बती मंत्रों की गूंज एक ऐसी ऊर्जा पैदा करती है, जो भीतर तक उतर जाती है।

संस्कृति और प्रकृति का मिलन
गंगटोक केवल एक हिल स्टेशन नहीं, बल्कि संस्कृति और प्रकृति का समागम है। यहाँ के लोग, उनकी भाषा, उनके उत्सव—सबमें एक तरह की सरलता और अपनापन है। उनकी जीवनशैली, भोजन और पहनावा पहाड़ों से गहराई से जुड़ा हुआ है।
गर्मी की छुट्टियाँ एक साधना बन गईं

इस यात्रा ने मुझे केवल एक पर्यटक नहीं रहने दिया, बल्कि एक साधक बना दिया। एक शिक्षक होने के नाते, प्रकृति से यह सिखने को मिला कि शांति, अनुशासन और सौंदर्य—सिखाने से ज़्यादा देखने और महसूस करने की चीज़ें हैं।
गंगटोक में बिताए गए ये दिन मेरे जीवन की उस डायरी का हिस्सा बन गए हैं, जिसे मैं बार-बार पढ़ना चाहूँगा। यह यात्रा मेरे लिए केवल एक अवकाश नहीं, बल्कि आत्म-अन्वेषण की एक अद्भुत प्रक्रिया थी।
निष्कर्ष:
यदि जीवन की भाग-दौड़ से कुछ पल चुराकर आप आत्मा से मिलना चाहते हैं, तो गंगटोक जाएं। वहाँ की वादियाँ, झरने, मोनेस्ट्रीज़ और बादलों की चुप्पी आपको खुद से मिलाने में मदद करेंगी—जैसे G.M. ACADEMY के प्रधानाचार्य को हुई।
“कभी-कभी प्रकृति से मिलकर हम खुद को पा लेते हैं।”
