शिक्षा और समर्पण की अमर विरासत: स्वर्गीय विश्वंभर नाथ तिवारी जी को श्रद्धांजलि

जनता इंटर कॉलेज और जी.एम. एकेडमी सलेमपुर के शिक्षा जगत में एक युग का अवसान हो गया। 19 फरवरी 2025 की भोर में, लगभग 2 बजे, शिक्षाविद् एवं समाजसेवी स्वर्गीय विश्वंभर नाथ तिवारी जी ने अंतिम सांस ली। उनके निधन से न केवल परिवार, बल्कि शिक्षण संस्थानों और छात्रों का एक विशाल समुदाय शोकाकुल है। अपने जीवनकाल में उन्होंने शिक्षा और संस्थान निर्माण के क्षेत्र में जो योगदान दिया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बना रहेगा।

एक शिक्षक से संस्थान निर्माता तक का सफर

विश्वंभर नाथ तिवारी जी ने जनता इंटर कॉलेज, चकरवा में अंग्रेजी और भूगोल के प्रवक्ता के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। छात्रों के बीच वह न केवल एक कुशल शिक्षक, बल्कि मार्गदर्शक के रूप में प्रतिष्ठित थे। सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने शिक्षा के प्रति अपने समर्पण को नहीं छोड़ा। वार्ड नंबर 3, भठवां धरमपुर सलेमपुर में रहते हुए उन्होंने जी.एम. एकेडमी सीनियर सेकेंडरी स्कूल के विकास में अहम भूमिका निभाई। संस्थान की प्रबंध समिति के सदस्य के तौर पर उनकी सूझ-बूझ और मेहनत ने स्कूल को नए मुकाम तक पहुँचाया।

शोक और श्रद्धांजलि:

उनके निधन की खबर से जी.एम. एकेडमी का परिसर स्नेह और शोक के भाव से सराबोर हो गया। प्रधानाचार्य मोहन द्विवेदी के नेतृत्व में समस्त स्टाफ ने 2 मिनट का मौन रखकर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना सभा आयोजित की। इस दौरान विद्यालय के संस्थापक गौरीशंकर द्विवेदी जी के साथ उनके साझे संघर्षों और यादों को भी याद किया गया। मोहन द्विवेदी ने कहा, *”विश्वंभर जी न केवल एक सहयोगी, बल्कि संस्थान की नींव के पत्थर थे। उनका जाना हम सभी के लिए अपूरणीय क्षति है।

स्वर्गीय तिवारी जी की विरासत उनके पुत्र आशुतोष तिवारी के रूप में जीवित है। पिता के मार्गदर्शन से प्रेरित आशुतोष जी न केवल जी.एम. एकेडमी में शिक्षण कार्य कर रहे हैं, बल्कि संस्थान के विकास में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। परिवार और समुदाय को उम्मीद है कि वह शिक्षा के क्षेत्र में अपने पिता के सपनों को आगे बढ़ाएंगे।

विश्वंभर नाथ तिवारी जी का जीवन शिक्षा, सेवा और सादगी की अनूठी मिसाल था। उनका निधन एक युग के समापन जैसा है, लेकिन उनके विचार और कर्म हमेशा प्रासंगिक रहेंगे। परिवार, छात्रों और सहयोगियों की ओर से उनकी दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की गई है।

शिक्षा वह दीपक है जिसे विश्वंभर जी ने जलाया, अब हमारा दायित्व है कि उसे और प्रज्वलित करें।” ॐ शांति!

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