Father’s Day विशेष लेख | EduSpectra समाचार
पिता: मौन की वह दीवार | Father’s Day पर G.M. Academy के प्रधानाचार्य मोहन द्विवेदी की विशेष प्रस्तुति
“पिता वह मौन दीवार हैं जो उम्र भर हमारे साथ खड़ी रहती है, उनके चुप रहने में भी जीवन की पूरी किताब छुपी होती है।” — प्रधानाचार्य मोहन द्विवेदी, G.M. Academy
Father’s Day केवल एक दिवस का उत्सव नहीं, बल्कि यह उस छाया के समान है, जो सदा हमारे सिर पर बनी रहती है। इस अवसर पर EduSpectra प्रस्तुत करता है एक विशेष विचार लेख, जिसमें G.M. Academy, Salempur, Deoria के प्रधानाचार्य श्री मोहन द्विवेदी के भावपूर्ण विचारों को प्रस्तुत किया गया है।
यह लेख न केवल एक पिता की भूमिका को उजागर करता है, बल्कि समाज में बदलते संबंधों, संवेदनाओं और जिम्मेदारियों की भी पड़ताल करता है। यह पिता के व्यक्तित्व, उनके संघर्ष, मौन प्रेम और वर्तमान सामाजिक परिप्रेक्ष्य में उनकी स्थिति को समर्पित है।
जब मौन बोले: पिता की परिभाषा
हमारे जीवन में पहली बार जब हम बोलते हैं, तो अक्सर पहला शब्द होता है “माँ”। माँ का ममत्व, उसका स्पर्श, उसकी मुस्कान तुरंत हमारे मन में दर्ज हो जाती है। पर उसी क्षण एक और चेहरा हमारी सुरक्षा के लिए दिन-रात अडिग रहता है— वह है पिता।
प्रधानाचार्य मोहन द्विवेदी कहते हैं:
“पिता कोई एक शब्द नहीं, वह एक संपूर्ण जीवन-दर्शन है, जिसे मौन में जिया जाता है। जब संतान अपने पहले कदम रखती है, तब कोई हाथ पीछे से उसे थामे रहता है— वह पिता होता है।”
पिता: एक तपस्वी छाया
पिता का प्रेम नदी की तरह गहरा, पर शांत होता है। वे अपने जज़्बातों को कभी सीधे प्रकट नहीं करते। वे बोलते कम हैं, लेकिन उनके त्याग, उनकी जिम्मेदारियाँ और उनकी दिनचर्या सब कुछ चिल्लाकर कहती हैं कि वे आपसे कितना प्रेम करते हैं।
श्री द्विवेदी के अनुसार:
विद्यालय और पिता: एक समानता
G.M. Academy के प्रधानाचार्य होने के नाते श्री द्विवेदी हर विद्यार्थी को अपने बेटे-बेटी की तरह देखते हैं। उनका मानना है कि विद्यालय केवल ज्ञान देने का स्थान नहीं, बल्कि ‘संस्कार देने की पाठशाला’ है।
वे मानते हैं:
“एक शिक्षक में भी एक पिता होता है। वह अनुशासन में प्रेम छुपाकर बच्चों को जीवन की राह दिखाता है।”
श्री द्विवेदी विद्यार्थियों से यह अपेक्षा नहीं रखते कि वे केवल अच्छे अंक लाएं, बल्कि वे चाहते हैं कि हर बच्चा एक अच्छा इंसान बने जो अपने माता-पिता को समझ सके, विशेषकर पिता की चुप्पी को पढ़ सके।
जब पिता के त्याग को अनदेखा कर देते हैं हम
क्या आपने कभी सोचा है कि आपके पिता आखिरी बार कब अपनी पसंद की चीज़ खरीदी थी?
क्या कभी महसूस किया कि वह इंसान जो कभी खुद के लिए छुट्टी नहीं लेता, आपके एक बुखार पर सब कुछ छोड़ देता है?
पिता का त्याग अक्सर अदृश्य होता है। वे कम में जीना सीख लेते हैं ताकि हम ज्यादा पा सकें और यही मैं अपने छात्रों को सिखाता हूं। — श्री द्विवेदी
बदलते सामाजिक परिप्रेक्ष्य में पिता
आज के आधुनिक युग में पिता की भूमिका में भी परिवर्तन आया है। पहले जहां पिता केवल अनुशासन और व्यवस्था के प्रतीक थे, अब वे भावनात्मक रूप से भी बच्चों के करीब आने लगे हैं।
“बच्चे जब अपने पिता को केवल कमाने वाला मानते हैं, तो एक रिश्ता अधूरा रह जाता है। लेकिन जब वे उन्हें एक इंसान के रूप में देखना शुरू करते हैं, तब रिश्ते में गहराई आती है।”
पिता का मूल्य: एक सांस्कृतिक दृष्टिकोण
भारतीय संस्कृति में पिता को देवता के तुल्य माना गया है।
“पिता स्वर्गः, पिता धर्मः, पिता हि परमं तपः।”
इस श्लोक का आशय है कि पिता ही स्वर्ग हैं, धर्म हैं और परम तपस्या हैं। G.M. Academy में छात्रों को यही मूल्य दिए जाते हैं कि माता-पिता केवल पालनकर्ता नहीं, बल्कि जीवन पथप्रदर्शक हैं।
पिता को पढ़िए, समझिए और अपनाइए
इस Father’s Day पर EduSpectra और G.M. Academy की यह संयुक्त प्रस्तुति इस बात की याद दिलाती है कि पिता की मौन उपस्थिति जीवन की सबसे मजबूत नींव होती है।
उनके मौन में, उनके थक कर भी मुस्कुराने में, उनके पीछे छूटते सपनों में — एक पूरी किताब छुपी होती है। उसे पढ़ने के लिए समय निकालिए।
उनसे बातें कीजिए, उनके अनुभवों को सुनिए, उनके संघर्षों की कहानियों को जानिए और उनके मौन प्रेम को शब्द दीजिए।
पिता केवल एक दिन के लिए नहीं, जीवन भर के लिए आदर के पात्र हैं।
Father’s Day के इस अवसर पर जब पूरी दुनिया पिता को एक दिन के लिए याद करती है, G.M. Academy के प्रधानाचार्य श्री मोहन द्विवेदी ने हमें यह सिखाया कि पिता को केवल एक दिन नहीं, हर दिन याद करना चाहिए।
उनकी प्रस्तुति सिर्फ एक भाषण नहीं थी, वह एक मौन में बोलती किताब थी — जिसमें पृष्ठ तो नहीं थे, पर अनुभवों का समुंदर था।
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