1971 में भी रथयात्रा दो दिन चली थी . सूर्यास्त तक ही रथ खीचें जायेंगे . रथ जहाँ रुकेंगे अगले दिन प्रातः वही से पुनः रथ यात्रा प्रारंभ होगी .

भगवान जगन्नाथ के रथ में 832 लकड़ियों का इस्तेमाल होता है . रथ की ऊंचाई 45 फीट 6 इंच होती है . लम्बाई  34 फीट होती है .

भगवान बलभद्र के रथ में 763 लकड़ियों का इस्तेमाल होता है . रथ की ऊंचाई 45 फीट  होती है . रथ में 16 पहिये होते है .

सुभद्रा  के रथ में 593 लकड़ियों का इस्तेमाल होता है . रथ की ऊंचाई 44 फीट 6 inch होती है . लं .चौ .  31 फीट 6 इंच .

सोने का झाड़ू लगाने और जल छिड़काव के बाद शुरू होती है रथ यात्रा. इस बार रथ यात्रा में राष्ट्रपति मुर्मू भी हो रही शामिल.

सबसे आगे भगवान बलभद्र  का रथ , बीच में बहन सुभद्रा का रथ और आखिर में  भगवान  जगन्नाथ का रथ होता है  

रथ यात्रा के बाद तीनो ही रथों को तोड़ दिया जाता है , क्यूंकि हर रथ यात्रा के लिए  नये रथ का निर्माण करने की परंपरा है .

ऐसा माना जाता है की जो भी रथ यात्रा में शामिल होता है उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है  तथा  काम , क्रोध और लोभ का अंत हो जाता है .

रथ यात्रा प्रारंभ होने के पश्चात सालबेग की  मज़ार के पास रथ रुक जाता है और फिर वहां से  गुंडीचा मंदिर के लिए आगे बढ़ता है .

गुंडीचा मंदिर जो की भगवान की मौसी का घर है , यहाँ भगवान् जगन्नाथ , बलराम और देवी सुभद्रा सात दिनों तक विश्राम करते हैं.

जगन्नाथ मंदिर में रथ की वापसी  की यात्रा को  बहुड़ा यात्रा कहा जाता है जो  आषाढ़ माह की दशमी तिथि को होता है .