हौसलों की मिसाल: हिमाचल की दृष्टिबाधित बेटी “न देख सकी दुनिया, पर दिखाई राह — छोंजिन ओंगमो की एवरेस्ट जीत”

जब अंधकार भी हार गया — छोंजिन ने साबित किया जज़्बा ही असली रोशनी है"

किन्नौर (हिमाचल प्रदेश), 27 मई 2025 GLOBAL NEWS and FACTS
छोटे से गांव से निकलकर विश्व की सबसे ऊंची चोटी तक का सफर तय करना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। लेकिन जब यह कारनामा एक दृष्टिबाधित महिला कर दिखाए, तो वह प्रेरणा बन जाती है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के छंगो गांव की रहने वाली छोंजिन ओंगमो ने माउंट एवरेस्ट फतह कर भारत ही नहीं, दुनिया की पहली दृष्टिबाधित महिला पर्वतारोही बनने का गौरव प्राप्त किया है।

रोशनी भले चली गई, पर उम्मीदें नहीं

छोंजिन की जिंदगी में संघर्ष बहुत पहले शुरू हो गया था। मात्र आठ वर्ष की उम्र में एक संक्रमण के कारण उनकी आंखों की रोशनी चली गई। लेकिन उन्होंने हार मानने की बजाय अपने जीवन को एक नए नजरिए से जीना सीखा। उनके माता-पिता ने उन्हें विशेष विद्यालयों में दाखिला दिलाया, जहाँ उन्होंने ब्रेल पद्धति से पढ़ाई की और खेलों में भी कई उपलब्धियां हासिल कीं।

एवरेस्ट पर चढ़ाई, हौसले की उड़ान

2024 में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया द्वारा प्रायोजित ‘एवरेस्ट एक्सपीडिशन’ में हिस्सा लेकर छोंजिन ने 8,848 मीटर ऊंचे माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा फहराया। उनके साथ हाई शेरपा और ओम गुरुंग जैसे अनुभवी मार्गदर्शक थे। इस कठिन यात्रा में छोंजिन ने अपने हौसले, समर्पण और आत्मविश्वास से सभी को चौंका दिया।

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शिक्षा के क्षेत्र में भी रही अव्वल

छोंजिन ने दिल्ली के मिरांडा हाउस कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने लद्दाख और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में कई पर्वतारोहण अभियानों में भाग लिया। वर्ष 2021 में वह ‘ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम’ जैसी विशेष मुहिम का हिस्सा बनीं, जिसका उद्देश्य दिव्यांगजनों को पर्वतारोहण के लिए प्रेरित करना है।

प्रेरणा बनीं लाखों के लिए

आज छोंजिन ओंगमो उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं जो किसी भी प्रकार की शारीरिक चुनौती से जूझ रहे हैं। उनका जीवन यह सिखाता है कि हौसले बुलंद हों तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं होती।

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